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श्रावण मास में शिव पूजा : रहस्यों से भरी है आदिदेव शिव की पूजा

 



डा० गणेश पाठक

 बलिया।। भारतवर्ष में देवाधिदेव आशुतोष भगवान शिव की पूजा सबसे अधिक की जाती है। वैसे तो भगवान शिव की विशेष पूजा फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को की जाती है, किंतु वर्ष भर प्रत्येक दिन भी भक्तगण अपने इस आराध्य देव की पूजा - अर्चना करते हैं। आईए इस लेख में हम जानते हैं कि शिव पूजन की प्रमुख रहस्यमयी बातें कौन - कौन हैं एवं शिव की विशेष पूजा क्यों की जाती हैं।

'शिव' का अर्थ - शिव अपने- आप में स्वयं रहस्यमय हैं। इसलिए 'शिव' का अर्थ भी कम रहस्यमय नहीं है।'शिव'

का नाम शारीरिक न होकर परमात्म शक्ति का गुण वाचक प्रतीक है। इसलिए यह ईश्वरीय गुणों एवं कर्तव्यों के आधार पर आधारित है। सनातन संस्कृति में 'शिव' का वास्तविक अर्थ 'कल्याणकारी' है,जो उन्हें सर्वशक्तिमान होने का भाव प्रकट करता है। यही कारण है कि अपने नाम के अनुरूप शिव मात्र किसी जाति, धर्म,मत, सम्प्रदाय का कल्याण नहीं करते, बल्कि मानव सृष्टि का कल्याण करते हैं।

             शिव का स्वरूप : साकार या निराकार 

        वैसे तो शिव की मर्ति की भी पूजा होती है, जिसे उनका साकार स्वरूप कहते हैं। किंतु वास्तव में शिव के निराकार रूप (शिवलिंग) की ही पूजा का विधान है। शिव की आरती एवं जब - तप में भी उनके निराकार रूप का ही गायन किया जाता है। जैसे - 'ऊॅं जय शिव ओंकारा' तथा 'ऊॅं नमः शिवाय' अर्थात्  ऊॅं (निराकार आत्मा) अपने ही समान ऊॅं आकार वाले निराकार पिता 'शिव' को याद करते हैं।'शिव' का अजन्मा, अविनाशी के रूप में गायन तथा 'ज्योर्तिमय' पिण्ड रूप में उनकी पूजा भी 'शिव' के निराकार रूप का ही द्योतक है।



शिव पर आक, धतूरा ,भांग एवं बेलपत्र चढ़ाने का रहस्य 

        चूंकि 'शिव' का अर्थ कल्याणकारी है,अंत: शिव ने अपने लोक- कल्याणकारी स्वभाव के कारण अवतार लेकर सर्व साधारण की आत्माओं से काम, क्रोध, लोभ, अहंकार, द्वेष, घृणा , वैमनस्य एवं उनके पापों को अपने में आत्मसात कर लेने के लिए मांगा था, किंतु उन बुराईयों के बदले नासमझ मानव ने मंदिर, भांग एवं धतूरा रूपी विस्मय पदार्थ अर्पित किया। शिव ने आंखों की कुदृष्टि ( पाप की दृष्टि) मांगी, किंतु मानव ने आकर का फूल अर्पित किया, जिससे कि आंखों की ज्योत ही समाप्त हो जाती है। शिव का विचार था कि हे मानव!   तुम सब आत्माओं को मुझे ही जानों अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश तीनों में ही हूं। क्योंकि मैं ही ब्रह्मा के रूप में सृष्टि की रचना करता हूं, विष्णु के रूप में पालन करता हूं एवं महेश के रूप में आसुरी सृष्टि का संहार करता हूं। अतः इन तीनों का जनक समझ कर मुझे ही स्मरण करो,तुम्हारा कल्याण होगा। किंतु अज्ञानी मानव ने तीनों के पिता होने के नाते तीन पत्रों वाला बेल - पत्र अर्पित किया।

              शिव के विविध नामों का रहस्य

      शिव के विविध नाम भी रहस्य से भरे हुए हैं। उनके ये नाम उनके गुणों एवं कर्तव्यों पर आधारित हैं,जो इस प्रकार है-

1. रामेश्वर - राम के ईश्वर अर्थात् राम के पूज्य।

2. गोपेश्वर -श्रीकृष्ण के पूज्य।

3. भूतेश्वर - भटकती आत्माओं को मुक्त करने वाले।

4. पाप कटेश्वर - पापों को काटने वाले।

5. मंगलेश्वर - मंगल (सुख - शांति प्रदान करने वाले।

6. अनंत ईश्वर - अपार शक्तियों वाले।

7. महाकालेश्वर - कारों के काल, महाकाल।

8. प्राणेश्वर - सर्व आत्माओं के प्राणों के ईश्वर।

9. ज्ञानेश्वर - सर्व आत्माओं के जन्म - जन्म को जानने वाले।

10. त्रिलोकीनाथ - तीनों लोकों के स्वामी। 

11. महाबलेश्वर - अतुलनीय बल वाले।

12. मनकामेश्वर - मन की कामनाएं और पूरी करने वाले।

13. मंगलेश्वर - सभी धर्मों एवं पंथों के ईश्वर।

14. जगदीश्वर - सम्पूर्ण जगत के स्वामी। 

15. ज्योर्तिलिंगम् - जिनका रूप ज्योति सदृश है।

16. ओंकारेश्वर - आत्माओं के परम् पिता।

17. परमात्मा - सम्पूर्ण आत्माओं के परम् आत्मा। 

18. त्रिमूर्ति - ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का एकाकार रूप।

19. क्षितिश्वर - पृथ्वी के स्वामी। 

20. औघड़ दानी - शिव का औघड़ एवं कल्याणकारी रूप।

21. ऊॅंकार अकाल मूर्ति - जो आत्मा के समान आकार वाले हैं एवं जिन्हें कोई काल नहीं खा सकता (गुरू ग्रंथ साहिब में)।

22. पावन प्रकाश - ज्योतिर्गमय निराकार प्रकाश स्वरूप(बाइबिल में वर्णित)।

23. पार - ब्रह्म परमेश्वर - सूर्य तारागणों के परे ब्रह्मलोक वासी।

24. मुक्ति दाता - मुक्ति प्रदान करने वाले।

25. संग - ए-असवद -

मक्का में मुस्लिमों द्वारा 'नूर'(ज्योति) के रूप में पूजित।

     उपर्युक्त नामों के अतिरिक्त भी शिव के अनेक रहस्यमय नाम है। (मण्डी - ऋषि कृत सहस्त्र नामावली 'महा भारत' में दी गयी है)।

                  शिवरात्रि पूजन का रहस्य

        शिव का जन्म साकार रूप से मनुष्यों के गर्भ से नहीं होता, अपितु परकाया में अवतरण होने से होता है। गर्भ से जन्म न लेने के कारण ही शिव को आजन्म - अविनाशी कहा जाता है।शिव का अवतरण कलियुग के अंत एवं सतयुग के आदि में सम्पूर्ण विश्व को नरक से स्वर्ग बनाने के समय  अति 'घोर अज्ञान' रूपी 'रात्रि ' के समय में होता है। यही कारण है कि शिव के अवतरण को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।

    शिव का वास्तविक स्वरूप देशों एवं मनुष्यों के समान न होकर सदैव ही प्रकाशमय अति सूक्ष्म 'ज्योति बिंदु' स्वरूप है। 'शिव' का आदेश था कि हे आत्माओं! मेरे 'ज्योति बिंदु ' रूप में ही मुझे स्मरण करना चाहिए, किंतु मानव उन्हें 'ज्योति बिंदु ' रूप में याद न करके उनके पिण्ड पर बिंदु बनाकर ऊपर से एक - एक बूंद जल गिराकर ही उनके 'ज्योति बिंदु' रुप की पूजा - अर्चना करते हैं।