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एसओ की तानाशाही व संवेदनहीनता हुई उजागर : सिपाही को नहीं दिया अवकाश, इलाज के अभाव में पत्नी की हुई मौत, अब सीओ करेंगे जांच

 


5 महीने की दुधमुही बच्ची के सिर से उठा मां का साया

बलिया।। बहुत दिनों से ज़ब आदमी एक ही जगह पर रहकर हुकूमत ज़ब करता है तो वह निरंकुश और संवेदन हीन भी हो जाता है। उसको अपने से योग्य और चतुर के साथ पॉवरफुल कोई दिखता नहीं है। सिकंदरपुर थानाध्यक्ष दिनेश पाठक पर उपरोक्त बातें सटीक बैठती है। घर का मुखिया ऐसा होना चाहिये जो अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य के सुख दुख की व्यक्तिगत रूप से जानकारी रखता हो। पिछले तीन कप्तानों के समय यानी लगभग तीन वर्षो से बलिया मे एक ट्रेंड चल रहा है - निरीक्षकों को पुलिस लाइन और पुलिस ऑफिस मे तैनात करके उप निरीक्षकों को उन सीमावर्ती थानो की जिम्मेदारी सौपी गयी जो मलाईदार थाने माने जाते है। अब इन थानो मे मलाई कैसी होती है, नरही थाना कांड से सर्वविदित हो गया है।ज़ब लक्ष्मी की बरसात ज्यादे होने लगती है तो आदमी संवेदनहीन होने लगता है।



सिकंदरपुर थाने पर तैनात नवजवान सिपाही की पत्नी का समय से समुचित इलाज न मिलने से हुई मौत और सिपाही द्वारा थानाध्यक्ष दिनेश पाठक पर इलाज कराने के लिये छुट्टी मांगने पर न देना थानाध्यक्ष की संवेदनहीनता को दर्शाने के लिये काफी है।यह बहुत ही दुखद और गंभीर मामला है। सिकंदरपुर थाने पर तैनात सिपाही प्रदीप सोनकर ने अपनी बीमार पत्नी के इलाज के लिए अवकाश मांगा, लेकिन थानाध्यक्ष दिनेश पाठक ने उसे डांटकर भगा दिया और छुट्टी नहीं दी । इलाज के अभाव में सिपाही की पत्नी की मृत्यु हो गई। सिपाही ने पुलिस अधीक्षक को लिखित शिकायत दी है और पत्नी की मौत के बाद वह अपनी 5 महीने की बेटी को छोड़कर सदमे में अस्पताल में भर्ती है। यह मामला पूरे थाने के कामकाज और मानवता के दृष्टिकोण पर सवाल उठाता है।यह मामला वास्तव में पुलिस विभाग में सीनियर और जूनियर के बीच संवेदनहीनता और शोषण का एक गंभीर उदाहरण प्रस्तुत करता है। एक सिपाही की पत्नी का इलाज न हो पाने के कारण मौत हो जाना और उसकी स्थिति की अनदेखी करना पूरी तरह से निंदनीय है। 





इस घटना से यह सवाल उठता है कि क्या इस थानाध्यक्ष को कड़ी सजा मिलेगी, जैसे कि निलंबन या आपराधिक मामला दर्ज करना, ताकि भविष्य में किसी भी जूनियर पुलिसकर्मी के साथ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ऐसा अन्याय न कर सकें?इसके अलावा, पुलिस विभाग को अपने आंतरिक जांच प्रणाली को और मजबूत करने की आवश्यकता है, ताकि ऐसे मामलों में तेजी से और प्रभावी तरीके से कार्रवाई की जा सके। 


यह मामला पुलिस विभाग की मानवीय संवेदनशीलता और जवाबदेही पर भी सवाल खड़ा करता है, और यह आवश्यक है कि उच्च अधिकारी उचित कार्रवाई करें ताकि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोका जा सके। पुलिस अधीक्षक विक्रांत वीर ने जरूर संवेदनशीलता दिखाई है और प्रकरण की जांच सीओ सिकंदरपुर को सौपी है। अब देखना है कि सीओ साहब क्या रिपोर्ट प्रस्तुति करते है।

कच्ची शराब के लिये मशहूर है यह थाना 

जनपद मे कच्ची शराब बनाने व बेचने के लिये जो थाने मशहूर है, वें है रेवती, सहतवार, हल्दी, बांसडीह,मनियर और सिकंदरपुर। सिकंदरपुर मे अवैध व जहरीली शराब घाघरा के किनारे व रेती पर धड़ल्ले से बनती व बेचीं जाती है और नाव के सहारे बिहार मे भेज दी जाती है। आप इसी से अंदाजा लगा सकते है कि ज़ब भी पुलिस अधीक्षक के आदेश पर कार्यवाही होती है तो एक दिन मे हजारों लीटर कच्ची शराब नष्ट की जाती है और कुंतलों मे लहन व अन्य उपकरण पकड़े जाते है। ऐसे मे यह खुद दर्शाता है कि ज़ब कार्यवाही नहीं होती है तो रोज कितनी कच्ची शराब बनती व बिकती है। यही कारण है कि इस थाने के चार्ज के लिये कई लोग प्रयासरत रहते है। वही मनियर थानाध्यक्ष मंतोष सिंह का भी कच्ची शराब बनाने वालों से वसूली का एक वीडियो वायरल है। यह दर्शाता है कि कच्ची शराब की वसूली, शेर के मुंह मे खून लगने जैसी है।