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नई शिक्षानीति और विश्वविद्यालयों की नीति, विद्यार्थियों को लें जा रही है अंधकार की ओर : डॉ अवनीश चंद पाण्डेय

 



  बलिया।।जनकुआक्टा (जननायक चन्द्रशेखरविश्वविद्यालय सम्बद्ध महाविद्यालयीय शिक्षक एसोसिएशन, बलिया) ने आरोप लगाया है कि यह एजेंसियां ही ईस्ट इंडिया कंपनी की भांति सरकारी और प्राइवेट शिक्षण संस्थानों को समाप्त करने के लिए पर्याप्त है।


बलिया एक्सप्रेस के उप संपादक डा सुनील कुमार ओझा साथ के  वार्ता में महामंत्री डॉ अवनीश चंद पाण्डेय का दर्द छलका है। कहा कि बड़े दुर्भाग्य की बात है कि विद्यार्थियों के बढ़ रहे बोझ और सरकारी संस्थाओं में उस बोझ को वहन न कर पाने के कारण सरकार वित्तविहीन संस्थाओं को मान्यता दी और उसमें शिक्षक इस भाव से अध्यापन करते थे कि एक दिन सरकार हमें ग्रांट देगी और अपना कर्तव्य समझकर युग निर्माण,राष्ट्र निर्माण और भविष्य निर्माण में लगे रहते थे। जमाना बदला और स्ववित्त पोषित संस्थाओं को विद्यार्थियों के बोझ को संभालने का दायित्व सरकार इस मंसूबे के साथ दी कि 

उद्धव का लेना न माधव का देना 

किंतु शिक्षा व्यवस्था  

"झूठइ लेना झूठइ देना। झूठइ भोजन झूठ चबेना।

बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा। खाइ महा अहि हृदय कठोरा।।"


 विद्यार्थियों को अच्छी व्यवस्था, अच्छी पढ़ाई तथा शिक्षकों को अच्छे वेतन का वादा कर विद्यार्थियों और शिक्षकों को अंतहीन शोषण के भूखे शेर के सामने फेंक दिया गया है । पीढ़ियों के बेरोज़गार और गरीब अभिभावकों पर यह व्यवस्था भारी पड़ने पर अभिभावकों द्वारा यह बोझ वहन करने से इंकार करने के कारण इस बोझ को वहन करने के लिए और पढ़ाई भी जारी रखने के लिए विद्यार्थियों ने काम के साथ पढ़ाई का रास्ता अख्तियार किया है ।

    संघ की पाठशाला बन कर रह गये है विश्वविद्यालय 

बेरोज़गारी से तबाह भारत के गरीब और छद्म - रोजगारी छात्र नयी शिक्षा नीति के बोझ से छद्म -रोजगार से भी हाथ धोने की कगार पर पहुंच गए हैं। कुलसचिव और कुलपति एजेंसियों की निरंकुशता और भ्रष्टाचार के आगे बेबस और लाचार दिख रहे हैं।यह सिर्फ एक विश्वविद्यालय की स्थिति नहीं है,अपना विश्वविद्यालय तो नया है किन्तु उत्तर प्रदेश के सभी राज्य विश्वविद्यालयों की स्थिति कमोबेश यही है। आज जेएनसीयू बलिया में नहीं , कल लखनऊ में ही नहीं  बल्कि कमोवेश स्थिति पूरे देश मे यही स्थिति है। ह्वाट्सअप विश्वविद्यालय और संघ की पाठशाला शिक्षा के प्रसार की वह प्रणाली है जहां किताबें और विश्वविद्यालय, कालेज और महाविद्यालय, लाइब्रेरी और वाचनालय, सेमिनार और कान्फ्रेंसेस,ओरिएंटेशन और रिफ्रेशर एक देश की शिक्षा प्रणाली के लिए नहीं बल्कि एक पार्टी की शिक्षा प्रणाली के लिए विकसित किया जा रहा है। जहां ज्ञान और विज्ञान को द्वितीयक स्तर पर और अंधविश्वास और भक्ति को प्राथमिक स्तर पर बैठाकर तर्क और बुद्धि को अंधविश्वास के निर्देशन में रखा जाए और अंधविश्वास के निर्देशन में शिक्षित और संस्कारित होने के लिए कालेज और विश्वविद्यालय जाने की जरूरत नहीं होती है। रही बात डिग्री की तो समस्त संस्थानों को बंद भी कर दिया जाए तो एजेंसियां उस कार्य का भलीभांति संपादन करने में सक्षम हैं।

ऑफ लाइन चलने वाली शिक्षा व्यवस्था को तहस नहस करने वाली है नई शिक्षा नीति 

 नयी शिक्षा नीति 2020  स्वरोजगार जनित पढ़ाई की नीति लेकर आई। जब यह नीति आई तो नीति निर्माताओं को यह पता ही नहीं था कि जो वह शिक्षा नीति 2020 से चाहते हैं उसपर विद्यार्थी 1990 से काम के साथ पढ़ाई पर जा चुके थे। किंतु आनलाइन हाजिरी, स्कालरशिप आदि न देने का दबाव बनाकर और शिक्षकों पर आनलाइन हाजिरी का दबाव बनाकर और न ही विद्यार्थियों और न ही शिक्षकों को कुछ देने और  नैतिक आधार पर चल रही व्यवस्था को भी तहस नहस कर देने की मंशा का प्रकटीकरण और उस प्रकटीकरण का प्रभाव आज नये विश्वविद्यालयों में दिख रहा है।जब नये विश्वविद्यालयों में विद्यार्थी नहीं मिल रहे तो विश्वविद्यालय की जरूरत क्या? जैसे सवाल आने वाले समय में उठना लाजमी हो जाएगा। दरअसल सरकारी विश्वविद्यालयों, संस्थानों और वित्तपोषित महाविद्यालयों की कुंजी या सरलीकरण के रूप में प्राईवेट विश्वविद्यालयों, संस्थानों और महाविद्यालयों का विकास किया गया और किताबों के सरलीकरण के रूप में मेडजी  , श्योर सिरीज़ आयी और उससे भी बात नहीं बनी तो इन प्राइवेट विश्वविद्यालयों, संस्थानों और महाविद्यालयों की कुंजी या सरलीकृत रूप में अब विश्वविद्यालयों में एजेंसियों की घुसपैठ हो गई है जो कहां से निर्देशित होती हैं,एक खुला रहस्य हो गया है। ये एजेंसियां डिग्री के लिए पर्याप्त हैं और किसी कुलपति और रजिस्ट्रार का इनपर अंकुश नहीं हैं। यह एजेंसियां ही ईस्ट इंडिया कंपनी की भांति सरकारी और प्राइवेट शिक्षण संस्थानों को समाप्त करने के लिए पर्याप्त हैं। सरकारी संस्थाओं को प्राइवेट संस्थानों द्वारा और सरकारी एवं प्राइवेट संस्थानों को एजेंसियों द्वारा नष्ट करने का एक ऐसा कुचक्र रच दिया गया है जहां विद्यार्थियों और शिक्षकों का भविष्य ही नहीं, अभिभावकों, अभिभावकों के बाद समाज और समाज के बाद राष्ट्र का भविष्य धुंधला हो रहा है।