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बागी की 17 वीं पुण्यतिथि पर विशेष :बेबाक और आक्रामक पत्रकारिता के बेताज बादशाह थे लल्लन सिंह बागी

  



दीपक सिंह सचिव

मऊनाथ भंजन।।"रहता कलम से नाम कयामत तलत ये जोंक ,औलाद से बश यही दो पुश्त चार पुश्त"अपने तल्ख और आक्रामक लेखनी, पीड़ितों के पक्षधर तथा बगावती तेवर के धनी यशस्वी पत्रकार ललन सिंह बागी पत्रकारिता क्षेत्र के सशक्त हस्ताक्षर थे।

अपने बेबाक लेखन शैली में न्यायिक पक्ष की प्रबलता के चलते उन्होंने कभी भ्रष्ट आयामों के साथ समझौता नहीं किया। पत्रकारिता जगत में वे अपने लेखन की नई विधा के महारथी तथा इमानदार पत्रकारिता के जनक थे। यही वजह थी कि वे जहां कहीं भी खड़े होते थे, वहां पूरा उनका दमखम होता था। उनका चट्टान की तरह खड़ा हो जाना इस बात का संकेत था कि इस कलम के सिपाही को डिगाने की सारी सूरते खत्म हो चुकी है ।

रतनपुरा विकासखंड के मलपुर लोहराई ग्राम पंचायत के कृषक परिवार में जन्मे लल्लन सिंह बागी पुत्र स्वर्गीय रामजन्म सिंह का बचपन गांव में बीता। शिक्षा दीक्षा में वह अव्वल रहे। उनकी बौद्धिक क्षमता का वास्तविक अंदाजा ग्रेजुएशन की शिक्षा दीक्षा के दौरान प्राध्यापकों और उनके साथियों ने लगा लिया था। शहर के दुर्गादत्त चुन्नीलाल सागरमल खंडेलवाल स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्रवेश लेते ही वे वाद विवाद प्रतियोगिता तथा व्याख्यानमाला जैसे कार्यक्रमों में भाग लेकर अंतर्जनपदीय मान सम्मान में अभिवृद्धि की ।तब उनकी प्रतिभा तथा बौद्धिक क्षमता का भरपूर ढंग से आकलन किया गया। महाविद्यालय के व्याख्याता तथा सहपाठी भी बागी का प्रयोग छात्र संघ के चुनाव में करने को लालायित हो गए। बौद्धिक क्षमता का उत्तरोत्तर विकास से बागी की पहचान पूरे जनपद में बन गई ।कई वाद विवाद प्रतियोगिता में उन्हें प्रथम पुरस्कार से नवाजा गया । जिससे उनकी जिले में विशिष्ट पहचान बन गई। उनके शुभचिंतक सहपाठियों के कृपा पूर्वक आग्रह पर वे महाविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा ,और भारी मतों के अंतर से विजई घोषित किए गए । अपने बगावती तेवर ने उन्हें "बागी" उपनाम प्रदान कर दिया ।इस बीच पूर्व केंद्रीय मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने तत्कालीन राजीव गांधी के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। बीपी सिंह के ईमानदार छवि से प्रभावित होकर जब देश के नौजवान वर्ग राजा नहीं फकीर है, देश का तकदीर है'  का नारा नारा बुलंद करते हुए उनके साथ हो लिए, तो बागी भी इसमें उनके हमराह बन गए, और मऊ, गाजीपुर ,बलिया ,आजमगढ़, जौनपुर ,मिर्जापुर ,वाराणसी, इलाहाबाद जैसे जनपदों में अलख जगाते हुए अपने शानदार भाषण शैली का लोहा मनवा लिया ।लोग बागी के भाषण शैली के दीवाने थे। वे जिस किसी गोष्ठी ,कार्यक्रम अथवा समारोह में सम्मिलित होते लोग उनके भाषण और विचार सुनने के लिए व्यग्र हो जाते थे । परंतु कार्यक्रमों में बढ़ती मांग पर वे अपने श्रोताओं को कभी निराश नहीं किया। वर्ष 1983 में वह ज्ञान मंडल लिमिटेड द्वारा प्रकाशित आज हिंदी दैनिक से जुड़े ।जब उनके बड़े भाई महेंद्र सिंह ने आज संवाददाता के पद से त्यागपत्र दे दिया । क्योंकि वह सहायक अध्यापक पद पर नियुक्त हो गए थे । साहित्य से जुड़े होने के नाते उन्हें पत्रकारिता की नई विधा काफी रास आई ,और उन्होंने मऊ की पत्रकारिता में नया रंग भरकर बौद्धिक वर्ग में नई हलचल पैदा कर दी। मऊ की पत्रकारिता में संप्रदाय विशेष की संवेदनशीलता की नब्ज को पहचानना थोड़ा दुष्कर कार्य है। जिसे समय रहते बागी ने पकड़ लिया। उनकी क्षेत्र में विशिष्ट पहचान बन गई तब वाराणसी से प्रकाशित होने वाले  आज हिंदी दैनिक पत्र जन जन का इकलौता पत्र था , अपनी ओजस्वी भाषा को जिस तेवर के साथ उन्होंने पाठको  के समक्ष रखा , उससे उनकी पत्रकारिता जगत में ओहदा काफी ऊंचा हो गया ।मऊ दंगे की रिपोर्टिंग तथा सिराज हत्याकांड का यथार्थ प्रस्तुति करके वे आज के पाठकों के बीच छा गए। 

उनकी बेबाक और आक्रामक लेखन शैली ने वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश चंद सिंह को काफी प्रभावित किया। प्रकाश चंद सिंह ने उनके लेखन शैली में असीमित ऊर्जा का संचयन देखा । जब वह बागी से मिले तो पहली ही मुलाकात में इस व पत्रकार के भीतर असीमित संभावनाएं देखी। परंतु विचारों में वामपंथ की गंध पाकर उन्हें निराशा हुई । बाद में बागी का वामपंथ से मोहभंग हो गया। वह वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश चंद सिंह, स्वर्गीय सुशील त्रिपाठी, आशीष बागची, स्वर्गीय अशोक पांडेय ,प्रमोद मालवीय जैसे विद्वान और दिग्गज पत्रकारों के सानिध्य में आकर उनकी कलम में और भी निखार आता गया । जब आज हिंदी दैनिक में तीसरी आंख स्तंभ की शुरुआत हुई तो बागी ने उसमें नए तेवर और कलेवर के साथ अपने लेखन को आजमाया। हास्य शैली में लिखे जाने वाले तीसरी आंख स्तंभ में उनके लेखन की तेजाबी किरणों ने समाज के सभी वर्गों को काफी हद तक प्रभावित किया। शासन और प्रशासन में भी उनके नाम का डंका बजता था। जहां बागी संबोधन होते ही जेहन में पत्रकार जगत के एक महारथी का नाम उभरता था । वही बागी नामक एक सिक्का प्रशासन में खूब चलता था। जो मरते दम तक काम होने की गारंटी था। अपनी खूबियों के चलते वे अपने शुभचिंतकों मित्रों और जूनियर सहायकों में लब्ध प्रतिष्ठित थे ।

 अब उनकी यह खूबी हो चाहे खामी वे अपनों के लिए सब कुछ करने को हरदम तैयार रहते थे ।यही वजह थी कि एक बार जो बागी जैसे मजबूत वटवृक्ष के नीचे आ गया ,वह उन्हीं का बनकर रह गया ।आज यह कद्दावर शख्सियत भले ही हम सबके बीच नहीं हैं ।परंतु उनका यह कद ,चरित्र आज भी लोगों के जेहन में नित नई ऊर्जा का संचार करता है।

 4 सितंबर 2007 का वह मनहूस दिन जब प्रातः बेला में उनका स्वास्थ्य तेज गति से बिगड़ने लगा। मऊ के वरिष्ठ चिकित्सक भी उनके हालात में सुधार नहीं ला सके । तो मजबूरन परिजन उन्हें पीजीआई ले जा रहे थे , आजमगढ़ से आगे ज्योही वे शाहगंज मार्ग पर बढे काल के क्रूर हाथों ने बागी की सांसे छीन ली । यह महारथी अब हम सबके बीच नहीं है। महज 49 वर्ष की अल्प आयु में ही अपने मित्रों ,परिजनों और शुभचिंतकों को छोड़ कर के चले गए।ललन सिंह बागी के बारे में मशहूर था कि जब उनका किसी से दिल मिलता था, तभी वे किसी से हाथ मिलाते थे। परंतु वे सभी के दिलों में जीवित हैं, जिंदगी भर दूसरों के हक, हुकूक और भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ने वाला महान शख्सियत जिंदगी की लड़ाई में अंततः हार गया ।परंतु पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने जो मापदंड और आदर्श कायम किया है ,उसे तोड़ पाना शायद ही किसी के लिए संभव है। सामाजिक ,राजनीतिक ,शैक्षिक और पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उनकी यह 14 वीं पुण्यतिथि है। जिससे हम सभी की आंखें सजल हो जाती हैं । परिवार में उनके माता-पिता पहले ही दिवंगत हो चुके हैं। उनके बड़े पुत्र इंजीनियर पुनीत कुमार सिंह उर्फ पिन्नू अब इस दुनिया में नहीं है। उनके दूसरे पुत्र प्रशांत सिंह उर्फ वी सी सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं ,और वे अपने माता श्रीमती कौशल्या सिंह के साथ रहते हैं। और एक प्राइवेट कंपनी में कार्य कर रहे हैं।

अपने विशाल ह्रदय में सब को समाहित करके ले चलने की अटूट निश्चल भावना इस महान शख्स में रही है। निकटस्थो को आज भी बागी का दमदार तेवर और अजीम शख्सियत उनके दिलों में उनके आदर्श को जिंदा रखा है। लगता ही नहीं है कि वह हम सबसे दूर हैं।

रतनपुरा प्रखंड के छिछोर न्याय पंचायत मंडल मुख्यालय का यह सौभाग्य था कि न्याय पंचायत में एक प्रतिभावान छात्र को डीसीएसके जैसे महाविद्यालय का प्रतिनिधित्व करने का सौभाग्य मिला। जिसमें ललन सिंह बागी मलपुर लोहराई ने 1982 में डीसीएसके पीजी कॉलेज  मऊ के छात्र संघ का प्रतिनिधित्व किया।  दिवंगत लल्लन सिंह बागी के भतीजे अनुज सिंह उर्फ पिंटू सदैव उनके साथ साए की तरह रहते थे। 4 सितंबर 2007 को जब उनकी तबीयत नासाज हो गई ,तो अनुज उर्फ पिंटू अपने चाचा की सेवा में लगे रहे। यही नहीं जब उन्हें पीजीआई ले जाया जा रहा था, तब भी पिंटू उसके साथ थे। चाचा ने जब दम तोड़ा तो पिंटू को ऐसा लगा कि उसकी दुनिया ही उजड़ गई।उनकी देखभाल कर रहे उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या सिंह भी साथ थी। जिनका रोते-रोते बुरा हाल था।उनकी कमी हमेशा खलती रहती है। बागी एक ऐसी शख्सियत थी कि उनसे जो भी जुड़ा, वह उनका होकर रह गया।लोग बागी के मित्र होने पर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते थे। इस महान शख्सियत में यह चुंबकीय शक्ति थी कि हर अजीम शख्स को यह लगता था कि मैं बागी का सबसे करीबी हूं ,और इसे भ्रम कहे या नज़दीकियां ।सभी को यह एहसास होता था कि मैं बागी का बेहद करीबी हूं। यह महारत केवल बागी ने ही हासिल किया था।

 दिवंगत लल्लन सिंह बागी के सहयोगियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है । जिसमें उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार मंडल के अध्यक्ष उमाशंकर ओमर, प्रकाश चंद्र सिंह, हरेराम सिंह, ललन सिंह सेवानिवृत्त शाखा प्रबंधक, सालीम अंसारी पूर्व सांसद, फतेह बहादुर गुप्त, प्रवीण सिंह, डॉक्टर पी एल गुप्ता जनरल एवं लेप्रोस्कोपिक सर्जन, ओम प्रकाश गुप्त संपादक पूर्वी संसार, सुरेश सिंह सेवानिवृत्त शाखा प्रबंधक ,ठाकुर नरेंद्र सिंह लोहराई, संजय कुमार सिंह, अब्दुल अजीम खान,सुरेश कुमार श्रीवास्तव ,राजेश पांडेय, स्वतंत्र कुमार गुप्ता उर्फ मुन्ना, देव प्रकाश राय ,भानु प्रताप भारद्वाज उर्फ मिथिलेश, कैलाश प्रसाद चौरसिया, ऋषिकेश पांडेय, अरुण कुमार पांडेय, विजय कुमार अग्रवाल, विजय बहादुर सिंह वाणी सम्राट ,अजय सेठ, डॉक्टर पवन कुमार गुप्ता, डॉक्टर राम पुकार सिंह , डॉक्टर राजेश कुमार सिंह, व्यापार मंडल अध्यक्ष राम नारायण साहू, जयप्रकाश पटेल प्रमुख है।