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सबका साथ सबका विकास के नारे वाली सरकार मे विनियमितिकरण की आस में शिक्षक की टूटी सांस, परिवार पर टूटा दुख का पहाड़

 



 

डा सुनील कुमार ओझा

बलिया।। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, नारा देने वाली सरकार मे महाविद्यालयों मे पढ़ाने वाले अनुदानित स्ववित्तपोषित शिक्षक के रूप मे कार्य करने वाले अपनी जवानी को नियमित होने की आस मे देने के बाद बुढ़ापे की तरफ बढ़ चले है। इनकी हालत बंधुआ मजदूरों से अच्छी नहीं कही जा सकती है। इनकी माली हालत यह है कि न ढंग का खाना खा सकते है और न अपने बच्चों को महंगी फीस के चलते इंजिनियरिंग या डॉक्टरी की पढ़ाई कराने के विषय मे सोच सकते है। कहाने को असिस्टेंट प्रोफेसर है लेकिन कमाई चतुर्थ श्रेणी के आधे के बराबर भी नहीं। इनकी माली हालात तब पता चलती है ज़ब ये किसी कारण से दुनिया छोड़ कर चले जाते है। चुनाव आता है तो इनको नियमितीकरण का झुनझुना पकड़ा दिया जाता है और सरकार बनने के बाद इनको दर किनार कर दिया जाता है।

बता दे कि अनुदानित स्ववित्तपोषित शिक्षक के रूप में 2009 से ही मथुरा पी जी कालेज रसडा बलिया में समाज शास्त्र विषय में अपनी सेवा दे रहे असिस्टेंट प्रोफेसर चंदन कुमार गुप्ता का सड़क दुर्घटना में आकस्मिक निधन हो गया।इस अकल्पनीय घटना से अनुदानित  स्ववित्तपोषित शिक्षक  परिवार आहत एवम किंकर्तव्यविमूढ़ है और ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करें, और उनके परिवार को इस असहनीय वेदना को सहन करने की शक्ति प्रदान करें,यह प्रार्थना करता है।

    बता दे कि शिक्षक डा चंदन गुप्ता   के पिता जी पहले ही इस आस में कि मेरा बेटा एडेड डिग्री कालेज में  सहायक आचार्य के पद पर कार्यरत है, घर की माली हालत सुधार देगा, स्वर्गवासी हो गये । अब उनका घर की माली हालत सुधरेगी का सपना तो सपना ही रह गया।   दो पुत्रियां एक पुत्र  ,मां पत्नी को जीवन रूपी नौका का खेवनहार डॉ गुप्ता तो बीच में ही छोड़ कर आज चले गये। पत्नी जार बेजार हो रही है।  बच्चो की स्कूल फीस बाकी है, अब कौन भेरेगा।  पुत्रियों की शादी कैसे होगी? पिता जी की पुण्य तिथि इसी श्राद्ध के महीने थी अब कौन करेगा?  दशहरे में  बच्चो को कौन घुमाएगा? जैसे सवालों को डॉ गुप्ता की पत्नी की आँखों मे साफ देखा जा सकता है।

 जीवन मे प्रकाश का पर्व  दीपावली  आने से पहले ही घर का दीपक बुझ गया, दिन के उजाले में ही जीवन  के सफर में अमावस की काली रात आ गई।  ये पीड़ा भरे शब्द उस पत्नी के है  जो एक उम्मीद के साथ जी रही थी,कि सबका साथ सबका विकास वाली राम राज्य की सरकार है । विनियमितिकरण के वाद जीवन की गाड़ी पटरी पर आ जायेगी।  ध्रुव तारे और अग्नि को साक्षी मानकर फेरे लेने वाला  घर से गाड़ी पर निकला तो, फिर लौट के घर नही आया, आई तो उसकी लाश । 

  कहने को लोक कल्याणकारी  सरकारें है, लेकिन ये लोक कहां देखती है , वो तो वोट देखती है , विश्व गुरु बनाने की बांट दिखाने वालों के ,शब्दों की बाजीगरी में  जो यूथ विश्व की सबसे बड़ी डिग्री लेकर जब इस व्यवस्था से जुड़ा तो जुड़ा रहा गया। उसमे ऐसा उलझा की  खुद और परिवार के जिंदगी की उलझने कभी सुलझी ही नही। भूखे शिक्षकों के सहारे यह कैसी विश्व गुरु बनने की परिकल्पना है।

    अनुदानित महाविद्यालय शिक्षक संघ के संगठन से बात करने पर जिम्मेदार लोगो ने बताया कि  मित्र डा चंदन जी तो एक बानगी है। यही हाल 331 अनुदानित महाविद्यालय में स्व वित्त पोषित  3000 शिक्षको की भी यही हालत है  अब बहुत से शिक्षक साथी विनियमितिकरण की उम्मीद में 45 से 60  वर्ष की उम्र के बीच है।   जिनके मां बाप बीमार है, खुद बीपी और शुगर के पेशेंट है,बच्चे बड़े होकर  शादी के योग्य हो गए है।  तीन अंक में वेतन होने के कारण न ठीक से दवाई और न पढ़ाई हो पा रही है। प्रदेश की सत्ता में  एक संत बैठे है। आज शिक्षक अपने विनियमितिकरण की  आस की बाट  महाराज जी   से लगाए हुए है,  कभी हमारे दिन  भी  बहुरेंगे।  इसी उम्र में न जाने  कितनों की सांसे टूट चुकी है ,आगे कितनों की टूटेगी  कुछ कहा नहीं जा सकता है।दूसरो के जीवन में उजाला करने वाला गुरु आज खुद जीवन के गहरे अंधकार में डूबा है।


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