सुन्दर मेला लगाने वाला जिला प्रशासन मार्केटिंग मे फेल, ददरी मेला मे भीड़ न आने का यह है प्रमुख कारण
मधुसूदन सिंह
बलिया।। करोड़ों का राजस्व वसूलने मे सफल जिला प्रशासन ददरी मेला को जनजन तक प्रचार के माध्यम से पहुंचाने मे फेल साबित हुआ है। जिलाधिकारी बलिया ने रिकॉर्ड राजस्व की वसूली तो करा दी लेकिन इस मेला को चलाने व देखरेख करने की जिम्मेदारी जिन अधिकारियों को सौपी है, वें लोग मार्केटिंग मे नौसिखिये साबित हुए है। आज 9 दिन बाद भी मेला भीड़ के लिये तरस रहा है, दुकानदार ग्राहकों का इंतजार कर रहे है, झूला वाले बिना ग्राहकों के ही झूला चला रहे है। ऐसे मे सवाल यह उठ रहा है कि क्या मेला से सिर्फ राजस्व वसूली ही प्रशासन का एक मात्र लक्ष्य था? शुक्रवार को ब्रेक डांस झूले से एक परिवार गिर गया, महिला पुरुष व दो बच्चें घायल हो गये, महिला का हाथ टूट गया, लेकिन मेले मे चिकित्सकीय सुविधा न होने के कारण पुलिस टीम ने सभी को अपनी गाड़ी से जिला अस्पताल पहुँचाया। क्या यहां चिकित्सकीय सुविधा और एम्बुलेंस की सुविधा नहीं होनी चाहिये?
ददरी मेला बलिया जनपद के लिये सिर्फ मेला ही नहीं है, यह एक सांस्कृतिक धरोहर है, ऐतिहासिक साक्ष्य है, पौराणिक अकाट्य साक्ष्य है। ऐसे मेले की ऐसी दुर्दशा बलिया के नागरिकों के दिलो को कचोट रही है। बलिया के लोगों को इस मेला के राजकीय मेला के रूप मे लगने का बहुत दिनों से इंतजार था, अब ज़ब जिला प्रशासन ने लगाया है और मेलार्थियों का टोटका है तो लोग यही कह रहे है कि अगर यही राजकीय मॉडल है तो नहीं चाहिये। आज आलम यह है कि लोगों को एक दिन पहले पता चल रहा है कि मेले मे कल यह कार्यक्रम है। अभी लोग कवि सम्मेलन का इंतजार कर रहे थे कि पता चला कि कवि सम्मेलन तो हो गया। जबकि कवि सम्मेलन हमेशा मेला समाप्ति के कुछ दिन पहले होता था और इसके लिये 15 दिन पहले से प्रचार प्रसार होता था।
ददरी मेला मे ज़ब से 50 लाख वाला जर्मन हैंगर टेंट लगने लगा तब से भारतेन्दु मंच के कार्यक्रम का प्रचार प्रसार ही बंद कर दिया गया। नगर पालिका हो या जिला प्रशासन यह मान लिये कि जर्मन हैंगर लग गया तो हजारों की भीड़ अपने आप आ जायेगी। ज़ब जर्मन हैंगर मे कार्यक्रम की जगह देशी टेंट मे होता था तो कार्यक्रमों के लिये पास जारी होता था। नगर पालिका के 25 के 25 सभासदों को कम से कम 50 -50 पास दिया जाता था, जिससे कार्यक्रमों मे भीड़ हजारों मे जुट जाती थीं और यह भीड़ मेले मे खरीदारी करके मेला की रौनक़ भी बढाती थीं। यही नहीं अखबारों, होल्डिंग फ्लैक्स आदि के माध्यम से भी खूब प्रचार कराया जाता था, जिससे लोग पहले से ही अपने पसंदीदा कार्यक्रम के लिये अपना शेड्यूल बना लेते थे। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है। इस बार पहले से ज्यादे प्रचार की इस लिये आवश्यकता है क्योंकि इस बार सर्वाधिक वैवाहिक कार्यक्रम भी है। अब देखना है जिला प्रशासन अब से भी मेला मे रौनक़ लाने के लिये क्या करता है।