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सिकंदरपुर कस्बा स्थित ठाकुर जी मंदिर के पोखरे की मछलियों पर लगी कुछ लोगों की नजर, मारने की फिराक मे, हाई कोर्ट का भी है स्थगन आदेश



बलिया।। सिकंदरपुर तहसील मुख्यालय के नगर पंचायत क्षेत्र के मुहल्ला बढ्ढा वार्ड नंबर 4 मे स्थित ठाकुर जी चतुर्भुज नाथ मंदिर के लगभग 12 एकड़ मे स्थित पोखरा कभी चर्म रोगों से मुक्ति का केंद्र था, अब मछली व्यवसायियों की कुदृष्टि का शिकार हो गया है। 14 वी शताब्दी मे बनाया गया सुन्दर सा यह पोखरा अब मंदिर कमेटी, स्थानीय निवासियों और स्थानीय प्रशासन की उपेक्षा से अब मछली उत्पादन के व्यवसाय के लिये कुख्यात होने लगा है। जबकि इस मंदिर व इस पोखरे के सुंदरीकरण के लिये करोड़ों रूपये योगी सरकार ने आवंटित किया हुआ है, जिससे कुछ निर्माण कार्य शुरू भी हुए है। लेकिन ऐतिहासिक धरोहर और आस्था के केंद्र इस पोखरे को मछली पालन के रूप मे बनती नयी पहचान से स्थानीय हिन्दू धर्मावलंबियों मे आक्रोश बढ़ने लगा है। इस पोखरे मे पाली गयी मछलियों को मारने की फिराक मे कुछ लोग पड़े हुए है, की शिकायत स्थानीय निवासी मनोज कुमार पुत्र जगदीश प्रसाद ने उप जिलाधिकारी सिकंदरपुर से की है। श्री कुमार ने पोखरे की पाली गयी मछलियों को मारने से बचाने की लिखित गुहार लगायी है। श्री कुमार ने उप जिलाधिकारी को इस पोखरे पर माननीय उच्च न्यायालय इलाहबाद द्वारा 25 फरवरी 2005 को दिये गये स्थगन आदेश की कॉपी भी सौपी है। जिसके बाद उप जिलाधिकारी ने थानाध्यक्ष सिकंदरपुर को माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन का निर्देश दिया है।








                     क्या है पूरा मामला 

बता दे कि खालिद बेगम पत्नी स्व मोहिबुल हसन,अब्दुल सत्तार,गुलाम मुस्तफ़ा सभी पुत्रगण स्व अब्दुल वाहब आदि द्वारा माननीय उच्च न्यायालय इलाहबाद मे  जनपद बलिया के एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज द्वारा 2001 मे ठाकुर जी चतुर्भुज नाथ आदि के पक्ष मे पोखरे पर दिये गये फैसले के खिलाफ याचिका दायर की गयी थी जिस पर माननीय उच्च न्यायालय ने दोनों पक्षो से यथा स्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया गया है, जो आज भी लागू है।

स्थगन आदेश के बाद भी मछली मारते मुस्लिम पक्ष के लोग (कुछ माह का पुराना वीडियों )










शिकायत कर्ता मनोज कुमार ने इस पोखरे मे पल रही मछलियों को मंदिर की सम्पति होने के कारण इनको बचाने की गुहार लगाई है। जबकि दूसरा पक्ष 12 बीघे मे फैले पोखरे मे से करोड़ों की मछलियों को मारने के फिराक मे है। उप जिलाधिकारी ने इसको संज्ञान मे लेते हुए स्थगन आदेश का कड़ाई से अनुपालन करने का पुलिस को निर्देश दिया गया।



              करोड़ों की होंगी पोखरे की मछलियां 

12 एकड़ मे फैले ठाकुर जी चतुर्भुज नाथ के पोखरे मे लगभग डेढ़ करोड़ की मछलियों के होने का व्यापारियों द्वारा अनुमान लगाया जा रहा है। सूच्य होकर मंदिरों के पोखरे मे पाली गयी मछलियों को कोई मारता नहीं है, बस इनको चारा दिया जाता है। जबकि दूसरा पक्ष जो मुस्लिम समुदाय से है, मछलियों को मारने की फिराक मे है, ऐसा शिकायत कर्ता ने आरोप लगाया है। शिकायत कर्ता ने यह भी आरोप लगाया है कि विरोधी पक्ष स्थानीय प्रशासन से सांठ गांठ करके मछलियों को मार सकता है।



          एक नजर पोखरे के इतिहास पर 


चतुर्भुज नाथ मन्दिर के समीप चतुर्भुज नाथ पोखरा व रानी सागर जलाशय है। चतुर्भुज नाथ पोखरा व रानी सागर का पोखरा भी अस्तित्व रक्षा की गुहार लगा रहा है। कभी स्नानार्थी महिलाओं की भीड़ से सुबह शाम गुलजार रहने वाला यह पोखरा व जलाशय आज यदि वीरान पड़ा है, तो उसके मूल में लोगों की दिलचस्पी का अभाव है।

14वीं सदी में खोदे गए पोखरा का रकबा करीब 12 एकड़ से अधिक में फैला हुआ था। लेकिन कुछ लोगों के क्रूर दृष्टि के कारण यह आज पोखरा सिकुड़ने के साथ ही गंदगी का पर्याय बन गया है।  जहां तक चतुर्भुज नाथ पोखरा के ऐतिहासिक महत्ता की बात है, तो इसे 14वीं सदी में ही सुरथ नामक राजा ने खुदवाया था। साक्ष्यों के अनुसार यह पोखरा गुप्त काल का है। इसका जिक्र बाबर नामे मे भी मिलता है। बताया जाता है कि खोदाई के पूर्व यहां एक छोटा सा गड्डा था जो गंदे पानी से भरा रहता था। राजा सूरथ अपने राज्य से दूसरे राज्य इसी रास्ते से जा रहे थे। इसी दौरान उन्हें शौच लग गयी । उन्होंने अपने मुनीम से कहकर वही अपना पड़ाव लगवा लिया। मुनीम से पानी ले आने को कहा। काफी खोजबीन के बाद मुनीव को कही पानी नही मिला, तो मुनीब उसी गन्दे गड्ढे से पानी लेकर आया। बताया जाता है कि राजा सूरथ चर्म रोग से ग्रसित थे।




         जब राजा का चर्मरोग हुआ ठीक


राजा सुरथ ने शौच करने के बाद उस पानी का उपयोग जैसे ही किया उनका चर्म रोग ठीक होने लगा। उन्होंने घबराहट में अपने सिपाहियों से मुनीम को बुलाया। मुनीम को तो पहले से पता था की पानी गंदा था,इसीलिए राजा बुला रहे हैं, वह डरते डरते राजा के पास पहुंचा राजा सूरथ ने मुनीम से चिल्ला कर पूछा की पानी कहां से ले आए हो,मुनीम बता नहीं रहा था। राजा सूरथ ने मुनीम से उस गड्ढे के पास ले चलने को कहा। मुनीम राजा को उस गड्ढे के पास ले गया। जैसे ही मुनीम राजा को लेकर उसे गड्ढे के पास पहुंचा। राजा सूरथ उस गड्ढे में लोटपोट करने लगे राजा सूरत का चर्म रोग पूरी तरह ठीक हो गया।


जिसके बाद इससे प्रभावित होकर उन्होंने पोखरा की खुदाई शुरू कराया। जैसे ही पोखरे की खुदाई शुरू हुई, उसमें से तमाम मूर्तियां निकालनी शुरू हुई। जिससे प्रभावित होकर राजा सूरत ने एक मंदिर का निर्माण कराया। वहीं अपनी पत्नी के नाम से एक रानी सागर का भी जलाशय बनाया। इसके बाद मुनीम ने अपने नाम पर भी कुछ करने की मांग राजा से किया। जिस पर राजा ने सहमति देकर चर्तुभुज नाथ पोखरा व रानी सागर के मध्य मोहाना का निर्माण कराया।