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सरकारी व संविदा चिकित्सकों की प्राइवेट प्रैक्टिस के खिलाफ सीएम योगी से शिकायत, डीएम सीएमओ के पास पहुंचा जांच के लिये लखनऊ से आदेश

 



मधुसूदन सिंह 

बलिया।। जनपद मे सरकारी व संविदा चिकित्सकों द्वारा धड़ल्ले से प्राइवेट प्रैक्टिस की जा रही है। इनके द्वारा सरकारी अस्पतालों की नौकरी अपने अपने नर्सिंग होम मे मरीजों को भेजनें के लिये एक जरिया बन गयी है। जिला मुख्यालय की ही बात करें तो चाहे जिला अस्पताल हो या जिला महिला अस्पताल हो, इन दोनों मे तैनात चिकित्सकों के नाम इन दोनों अस्पतालों के आसपास खुले निजी अस्पतालों के बोर्ड पर बड़े बड़े अक्षरों मे शान से लिखें हुए दिखते हुए उत्तरप्रदेश सरकार के प्रैक्टिस पर रोक संबंधी शासनादेश की धज्जियां उड़ा रहे है। सूच्य हो कि सरकारी शिक्षकों को सरकार प्रैक्टिस न करने के लिये NPA के नाम पर एक मोटी रकम प्रतिमाह देती है। चिकित्सक भी यह लिखित बयान हल्फी दिये हुए होते है कि वो प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं करते है, फिर भी करते है? 

इसी से क्षुब्ध होकर आमघाट निवासी अरविंद सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इसकी शिकायत की है और इस पर रोक लगाने की मांग की है। श्री सिंह के शिकायती पत्र का संज्ञान लेते हुए शासन ने बलिया के जिलाधिकारी व मुख्य चिकित्सा अधिकारी से इस प्रकरण की जांच कर रिपोर्ट मांगी है। वही बता दे कि महिला अस्पताल से शिकायत कर्ता के मोबाइल पर फोन आया था कि आपने किसी चिकित्सक का नाम नहीं लिखा है, किसी एक का नाम बता दीजिये जांच करा दी जायेगी? फोन करने वाला व्यक्ति खुद ही शासनादेश की धज्जियां उड़ाते हुए एक ही पटल को लगभग 8 सालों से देख रहा है।भाई ज़ब दोनों अस्पतालों मे कार्यरत चिकित्सकों के संबंध मे शिकायत है तो शिकायत कर्ता एक का नाम कैसे दे दे।




बिहार सीमा से लगे अस्पतालों के चिकित्सक रहते है गायब 

बलिया जनपद मे बिहार निवासी चिकित्सकों की एक बड़ी तादाद कार्यरत है। अगर इनमे वरिष्ठ चिकित्सकों को छोड़ दे तो अन्य चिकित्सक अपनी पोस्टिंग दूर दराज के सीएचसी / पीएचसी पर इसी लिये कराये हुए है कि वो आसानी से अपने घर बिहार जाकर प्रैक्टिस कर सके। इनके न रहने से स्थानीय निवासियों को फार्मेसिस्ट या अन्य स्टॉफ से ही दवा लेनी पड़ती है। यही कारण है कि जिला अस्पताल पर मरीजों की भीड़ लगी रहती है।

ज़ब भी कोई नया जिलाधिकारी आते है या सीएमओ आते है, पूरी हनक दिखाते है, जांच करते है, अनुपस्थित का वेतन रोकते है, हिदायतें देते है। लेकिन कुछ दिनों बाद पुनः सब कुछ पुराने ढर्रे पर चलने लगता है। स्वास्थ्य विभाग मे कोई 15 सालों से एक ही पटल पर जुगाड़ से जमा रहता है, तो किसी का एक साल मे कई तबादले हो जाते है। तीन साल तक ही एक पटल देखने का शासनादेश यहां झुनझुना से ज्यादे कुछ नहीं है। चाहे कोई जिलाधिकारी हो या सीएमओ हो, इस शासनादेश का अक्षरतः पालन करा ही नहीं सकता है, यह अब तक के रिकॉर्ड के आधार पर कह रहा हूं।